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जैन सुशेध गुटका ।
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ऐसे, सत्य हनुमान तुम समरथ । एक दफे जाय कर आवो, खबर जल्दी से पावें हम ॥ ४ ॥
५६ हनुमानजी के साथ मुद्रिका भेजना,
( तर्ज- श्री नंदजी के कन्हैयालाल मारे घर श्रावजो ३ ) मुद्रिका मुझ करकी हनुमान, लेई ने जावजो ३ || ढेर || कही जो सीताजी ने खास, प्रभुको चित्त तुम्हारे पास | लग रही एक मिलन की आश, यही सुनावजो ३ ॥ १ ॥ स्वाद न लागे श्रन जल पान, सुन्दर एक ही वेरा ध्यान | योगी जैसे भजे भगवान, धैर्य धावजो ३ ॥ २ ॥ विश्वास खूप उसे दिराजो, कहजो मतना प्राण गमाजो | आता चूड़ामणि तुम लाजो, भूल मत जावजो ३ ॥ ३ ॥ चौथमल कहे राम यूं फेर, लक्ष्मण आने की है देर । मार रावण को बरतावे खेर, न संशय लावजो ३ ॥ ४ ॥
६० प्रत्युत्तर में चूड़ामणि का भेजना, (तर्ज- श्री नंदजी के कन्हैयालाल मारे घरे श्रावजो ३ )
लेकर चूड़ामणि हनुमान, वेगा जाव जो ३ ||टेर || प्रभु ने कहीजो तुम्हारी दासी, आपके दर्शन की है प्यासी । जानकी रहवे सदा उदासी, सविनय सुनावजो ३ ॥ १ ॥ मरती सिया न संशय लगार; जीवी नाम तंथों आधार । लीजो सुध कौशल्या कुमार; न देर लगावजो ३ ॥ २ ॥ यह है दुश्मन का ही स्थान; हुश्यार तुम रहना हनुमान | अरज मेरी जहां पर है. भगवान; ठेठ पहुंचावजो ३ ॥ ३ ॥
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