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जैन सुवोध गुटका।
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श्रावक हो तो ऐसा हो ॥५॥ दयालु हो कृपालु हो, जो शुद्ध श्रद्धा का धारी हो । न शंका हो न कांक्षा हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥६॥ गुरु हीरालाल सा ज्ञाता हो, चौथमल को सुन दाता हो । रत्नवत हृदय दिखाता हो, जो श्रावक हो तो एसा हो॥७॥
११४ रावण से सीता का कहना. (तर्ज-या हसीना वस मदीना, कर वला में तू न जा) अकल तेरी गई किधर, सिया कहे कुछ गौर कर रावण फजा आई तेरी, सीया कहे कुछ गौर कर ॥ टेर । अभिमान छाया तुझे, सोने की लंका देख कर । मेरे लिये यह कुछ नहीं, सीता कहे कुछ गौर कर ॥ अकल०॥ १॥ इश्क में सूझे नहीं अंधा बना तू वेहया, क्यों जुल्म पे बांधे कमर, सीया कहे कुछ गौर कर ॥२॥ खूब सूरत कामिनी, तेरे हजारों महल में । जिनसे सवर आती नहीं, सीया कहे कुछ गौर कर॥३॥ सूरज उदय पश्चिम हुए, फिर भाग निकले चांद से । ये मन सुमेरु ना चले, सीया कहे कुछ गौर कर॥४॥ सच तो स्वयंवर जीत लाता, क्यों चोर के लाया मुझे। दाग लगता वंशके, साया कह कुछ गौर कर ॥५॥ जुगर्नु कमर की दमक जहां तक, आफताब निकले नहीं, ऐसे पिया के सामने तू, सीया कहे कुछ गौर कर ॥६॥ कुटुम्ब सारा क्या कहे, तुझको जरा तो पूछले । मंदोदरी राजी नहीं,सीया कहे कुछ गौर कर ॥७॥ देख मेरे हुश्न को, फिदा हुआ हद से कमाल । मगर हक तेरा नहीं, सीया कहे कुछ गौर कर ॥८॥ वदफेल करने से कोई, आराम तो पाया नहीं। सती सताये है नरक, सीया कहे कुछ गौर कर ॥ ६॥ गुरू के परसाद से यूं चौथमल कहता तुझ।
चले, सीया चोर के लागत कमर कान ,सीया