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जैन सुबोध गुटका।
इंलु कर्मी जागे जी, जांके अल्प हाय संसारा ॥ ७॥ ।
-sxats११२ मनुष्य जन्म की उत्कर्वता. . ( तज--वारी जाऊरे सांवरिया तुम पर वारणारे ) ..
उत्तम नर तन पाय वृथा मत हारनारे । टेर। जीती बाजी नर तन पाया । फिर विषयन में क्यों ललचाया। सत्गुरू देवे सीख हृदय में धारनारे । उत्तमः ॥ १॥ मात पिता भगिनी सुत नारी । स्वार्थ वश करे सव यानी। दग्ध तृण मृग तजे न्याय विचारणारे ॥२॥ किसका हाथी घोड़ा पहेरा । चिड़िया जैसा रैन बसेरा। लफल संसार से नेह निवारणारे ॥ ३॥ जैनागम है धर्म तुम्हारा । तेने उस को क्यों विलारा। सुनि चौथमल की कहन निज प्रातम तारणा रे॥४॥
११३ श्रावक परिचय,
. (वर्ज-विना रघुनाथ के देखे ) विवेकी हो न टेकी हो, नहीं मिजाज में शेखी हो। हजारों में भी एकी हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥१॥ जो अरिहंत ध्यान ध्याता हो, वो नव तत्व ज्ञाता हो । सहाय सुरका न चाहता हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥ २॥ समभावी हो अमाई हो, वो गुण क्षा ही ग्राही हो । कदर जहां में सवाई हो । जो श्रावकः ॥ ३ ॥ न वुराई का करता हो, सदा जुल्मों से डरता हो । वो समभाव घरता हो, जो श्रावक हो तो ऐसा हो ॥ ४ ॥ आचारी हो विचारी हो, को बाहर व्रत का धारी हो । स्वधर्मी साज दावा हो जो .