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जन सुबोध गुटका |
३६२ प्रभु से प्रार्थना.
( तर्ज- अनोखा कुंवरजी हो के )
अर्ज मारी सांभलो हो के प्रभुजी, महावीर भगवन् || टेर || अर्जी पर मर्जी करो, हो प्रभुजी, गर्जी करे पुकार । महर नजर अत्र कीजिए, हो प्रभुजी, करुणा के भण्डार || १ || सेवक खड़ो दरबार में, हो प्रभुजी, टुक एक मुजरो झेल | धन माल मांगू नहीं हो प्रभुजी, सांगू मोक्ष की सैल || २ || अनन्त ज्ञान दर्शन धनी, हां प्रभुजी, अनन्त शक्ति के धार । तुम सम देव दूजा नहीं, हो प्रभुजी, श्रधम उधारण हार || ३ || शरणे श्रायो यापके, हो प्रभुजी, तारक विरद विचार । हुकम होय मुझ मिसल पे, हो प्रभुजी, चरते मंगलाचार ॥ ४ ॥ जो से शुद्ध भाव से, हो प्रभुजी, पग पग सुख प्रगटाय | ग्रह गोचर पीड़ा टले, हो प्रभुजी, रोग शोग मिट जाय ॥ ५ ॥ पिच्चासी साल सोले ठाणा, हो प्रभुजी, भेड़ते सेखे काल | गुरु प्रसादे चौथमल कहे, हो प्रभुजी, आप मेरे रिछपाल ॥ ६ ॥
३६४ ओलंबा..
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( तर्ज-- चिड़ो थने चांवलियां भावे )
( २६३ )
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सासुजी थांकी बड़ी बजर छाती श्रो, सासुजी थांकी
बड़ी बजर छाती, कंवरा ने तो संयम दिलायो म्हाने वरज
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