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( २७४ )
जन सुबोध गुटका ।
नहीं, तेरे दिल से ग़रूर हटाती सहीं ॥ ३ ॥ नेकी, करले ऐ दिला, तारीफ यहां रहजायगा । चौथमल कहे नेकी से, श्राराम हर जा पायगा, मिले मोक्ष हवीस- मिटा तो सही ॥ ४ ॥
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३७६. भलाई कर चलो.
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[ तर्ज-लाखों पापी तिरगये. सत्संग के परताप से ]
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मान मन मेरा कहा तारीफ जहां में लीजियो । अपनी तरफ से जान कर के, दुख न किसको दीजियो ॥ १९ ॥ तकदीर के बल से हो, इन्सान पन्न तुमको मिला। अपना विगाना छोड़ के, मलपन्न सत्रों से कीजियो || २ || गर तुमें कोई जान करके, वे जबां मुंह से कहे। जमीन के माफीक रहो, हरगिज न उस पै खीज़ियो || ३ || मिला तुम को डर सुनाने वाला व डरियो जरा । नेक नसीहत का यह शरचत, शोक से तुम पीजियो || ४ || गुरु के प्रसाद से कहे, चौथमल . ऐ साहियो । आराम जो चाहो भला, नेकी पै हरदम : रीजियो ॥ ५ ॥
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३७७: परस्त्री निषेध.:
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( तर्ज-मथुरा में आकर जन्म लिया, देखो जब बंशी वालेने) जो जोबन के हो मद, माते; परनारी को गरं चहाते