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जैन सुबोध गुटका।
(२७३)
याद रख तूं पाकवत में, हाथ मल पछतायगा ॥१॥ आप तो गुमरा हुआ' फिर; और 'को गुमराह करे । ऐसे अजावों से वहां पर, मुंह सिया होजायगा ॥२॥ हो खतर तकलीफ पहुंचाता, किसी मशकीन को । बबूल का तूं वीज चोकर, आम कैसे खायगा ॥३॥ रुह होगा कब्ज तेरी, जा पड़ेगा गोर में । बोल चन्दा है तूं किसका, क्या कहीं बतलायगा ॥४॥न हुकुमत वहां चलेगी, न चलेगी हुञ्जते । न इजारा वहां किसी का, रियाही कैसे पायगा ॥५॥ जवानी बातों खरच से, काम वहां चलता नहीं। चौथमल कहे कर भलाई, तो वरी होजायगा ॥ ६॥
३७५ सावधान हो. [तर्ज-स्वामी चरणों का दास वनालो मुझे]
प्यारे गफलत की निंद भगा तो सही, जरा प्रभु से लोह को लगा तो सही ॥टेर॥ साथ वाले चल बसे और, तूं भी अब मिजवान है। किस ऐश में भुलाःफिरे, रा.किधर को ध्यान है, तेने साथ क्या लिना बता तो सही ॥१॥ हुश्न तोदिन चार का, आखिर में यह ढल जायगा। जालिम बुढापा श्रायके, तेरे जिस्म पै छायगा, लेगा किसका तूं शरना जिता तो सही ॥२॥सर पर कजा यह घूमती, जिसकी तुझे खबर नहीं । बद काम में उमर गई अब तक तुझे समर