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, जैन सुबोध गुटका ।
(२७५)
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हैं। वे सर्वस्व को बरबाद करी, आखिर पापी पछताते हैं ॥१॥ दीपक की लो वत नारी पे लंपट पतंग परे जाके । वर्जेन रहे दुख पावत है, जल जल के प्राण गमाते हैं ॥२॥ 'देखी गरों की औरत को, कामान्ध फिदा होजाते हैं। खतर जीना करने को, जाहिल आमाद होजाते हैं ॥३॥ इज्जत का कुछ भी ख्याल नहीं, निर्लज्ज निडर बनके जालिम । पापों से लेटर भर भर के, दोजख को अपनाते हैं ।। ४ ।। गरम बना लोहेकी पुतली,उसके सीने से चेंटाते हैं । गुजों की उन्ह पै मार पड़े, रो रो के वहां चिल्लाते हैं ॥५॥ लंकपति की लंक गई,और पद्मनाभ का राज गया। लाखों नरका नुकसान हुअा, लो तब भी बाज नहीं आते हैं ।। ६ ।। श्रागम वैद्यक पुराणों में, कुरान अंजील भी मना करे । हाकिम भी पीनलकोड खोल के, फौरन दफा लगाते हैं ॥ ७ ॥ दिन चार का है महमान यहां, मत जुल्म पै अपनी बांध कमर । कहे चौथमल धन्य उस नरको, परनारी को बहिन बनाते हैं ॥ ८॥
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३७८ भाग्य बलवान्,
. . (तर्ज-पूर्ववत् ) ___ चाहे जितनी तूं तदबीर करे तकदीर लिखा वही पावेगा। चलती नहीं हुज्जत यहां किसकी, चाहे कितना