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________________ (२८४) जैन सुबोध गुटका। . . . ३८८ भागम: का लहत्वता.:. . . . (तर्ज-भारतमें आलिजाएं थी इन्साने किसी दिन) इस कलिकाल के बीच में, है सूत्र का आधार । करो आराधन भावसे तो निश्चय हो उद्धार ॥ टेक ॥ तीर्थकर न केवली, भारत के बीच में । मन पर्यव अवधि ज्ञानी भी नहीं संशय के हरनार ॥ १॥ जंघाचारण विद्याचारण मुनि यहां नहीं । श्राहारिक लब्धि के भी धारी, नहीं कोई अरणगार ॥२॥ अङ्ग उपाङ्ग मूल छेद, और आवश्यक । जो कुछ भी है तो इन पर ही है, सारा दार मदार ॥३॥ जिन वन परं श्रद्धान रख लाखों का द्रव्य त्याग । वे साधु साध्वी बनते हैं, तज मोह माया इसवार ॥४॥ कहे चौथमल जलगांव के श्रोता सभी सुनो. । तुम. पढ़ो.. पढ़ावो प्रेम से, करो अागम का प्रचार ॥ ५ ॥ . . . ... -sxe+s- . : ३८६ झूठ निषेध . . . (तर्ज-दिल चमन तेरा रहे, जिनराज का स्मरण किया ) . .. सोच नर इस झूठ से, अाराम तूं नहीं पायगा । हर जगह दुनियां में नर, प्रतीत भी उठ जायगा । टेर ।। सांच भी गर जो कहे. ईश्वर की खाकर कसम । लोग गप्पी जान के, ईमान कोई :नहीं लायगा ।। १ ।। क्रोध भय अरु हाग्य चौथा, लोम में हो अंध नर । बोलते हैं
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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