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जैन सुवोध गुटका ।
(२८५)
MARAN
झूठ उन्ह के, हाथ में क्या पायगा ।।२।। झूठ पोशीदा रह, कहां तक जरा तुम सोचलो । सत्यता के सामने, शिरमन्दगी उठायगा ॥३॥ भूठे पोले शख्स की, दोजख में कतरे जवाँ । बोलकर जाव बदल, उसका भी फल वहां पायगा ॥ ४ ॥ बोलता है भूठ जो तूं, जिसलिय अए बेहया । वह सदा रहता नहीं, देख देखते बिरलायगा ।।। झूठ बोलना है मना, सब धर्म शास्त्र देखलो। इसलिये तज झूठ को, इजत तेरी बढ़ जायगा ॥६॥ गुरु के प्रसाद से कहे चौथमल सुनलो जरा । धारले तूं सत्य को, पावागमन मिटजायगा ।। ७॥
३६० ममत्व त्याग,
[त-पूर्ववत् ] क्या पाप का भागी बने नूं,अए सनम धन के लिये । जुल्म कता.गेर पर तूं , ए सनम धन के लिये ॥ टेर ॥ तमन्ना ऐसी बढ़ी, हक हलाल को गिनता नहीं । छोड़ के अजीज को, परदेश जा. धन के लिये ॥१॥ स्वमा रंदा भी न देखा, नहीं नाम से जाना सुना। गुलामी उनकी करे, तुं देखले धनके लिये ॥२॥ फकीर साधु पास जा, खिदमत करे कर जोड़ के | बूंटी को ढूंढे सदा. तूं, अए सनम धन: के लिये ॥३॥ इसके लिये भाई . वधुओं से, मुसदमा बाजी. करे । कोरटों के बीच में