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जैन सेवाप गुटका ।
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वस्ती, कम हो पंचम भार ।। मिलत ।। जहां रहे मास मुनि गुणवान ॥३॥ साधु श्रावक की पड़मा मत जान । गुरु कम देगा शिष्य को ज्ञान । शिप्य पण ऐमा होवेगा, गुरु का अवगुण जे वेगा ।। दोहा ।। शुद्ध साचारी महा मुनि, ऐसे अल्प अणगार । दया दान निषेध कई, होये भेप का धार ।। मिलत || समाचारी गच्छ, जुदा जान ॥४॥मलेच्छ, राजा होगा बलवन्त, चलेगा हिन्दू जिसके पंथ, उत्तम के घा में नीच निशान, हिन्दू राजा कम होती मान ॥दोहा।। 'मुख मांगी वर्षा नहीं, नहीं भाई २ के प्रेम । चौथमल कहे सुखी होगा, जो धरे प्रभु को नेम ॥ मिलत । मुन अब चेतो चतुर सुजान ।। ५ ।।
noirien २४० सम्प से लाभ.
(तर्ड-लावनी छोटी कड़ी) देता हूं ज्ञ न की चूगल, एक चित्त सुनना । अब फूट छोड़ के शीघ्र सम्प कर लेना ॥ टेर ॥ एक ही ईट से दीवार कहां चनती है । एक ही हाथ से ताली कहां बजती है । एक ही पहिये से गाड़ी का ना हो चलना । अय० । ॥१॥क्रया ज्ञान एक २ से सिद्धि नहीं पाव, दानों मिलने से शिवपुर माही जारे । तकदीर और तदबीर दोनों ऊचरना ॥२॥ जो दो के होचे सम्म उसके कौन तोले । हजागें प्रालिम में सिंह के मानिंद वोले । दुश्मन भी जाये