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जैन सुवोध गुटका। (२६१) छोड़दे ॥३॥ इसके जरिये हो लड़ाई, कैदमें भी जा फसे । जहर खा कई मरगये, चुगली का खाना छोड़दे ॥४॥ शोको भिंडाई रामने, बनवास सीताको दिया । आखिर सत्य प्रगट हुवा, चुगली का खाना छोड़दे ॥५॥ गुरु के प्रसाद से कहे, चौथमल सुनलो जरा | पाकवत का खोफ ला, चुगली का खाना छोड़दे ॥६॥
३६६ निन्दा परित्याग. ...[तर्ज पूर्ववत्] . आवरु बढ़ जायगी, निन्दा पराई छोड्दे। मानले कहना मेरा, निन्दा पराई छोड़दे ॥टेर ॥ तेरे सिर पर क्यों धेरै तूं,खाख लेके और की । दानीसमंद होवे अगर, निन्दा पराई छोड़दे ॥१॥ गुलाब के गर शूल हो, माली के मतलव फूल से । धार ले गुण इस तरह, निन्दा पराई छोड़दें ॥२॥ खूब सूरती कव्वा न देखे, चींटी न देखे महल को । जरोख जैसें मतं बने । निन्दा पराई छोड़दे ॥३॥ पीठीमै सं इसको कहा, भगवान श्री महावीर ने । मीसाल शूकर की समझ; निंदा पराई छोड्दे ॥४॥ गिन्वत करे नर गेर की, वो भाई का खाता है गोश्त । कुरान में लिखा सफा, निन्दा पराई छोडदे ॥।॥ सुन भी ली चाहे देखली, गर पूछली कोई शख्स से । झूठ हो चाहे सांच हो, निन्दा