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जैन सुबोध गुटका।
(१६७)
॥ टेर । जिमके दिल में रहम नहीं, उसके दिल में रहमान नहीं । जिसने सतसंग नहीं करी, उसको शहर और ज्ञान नहीं । जिसके बदन में नहीं नम्रता, उसको मिलता मान नहीं। वह वैद्य है क्या दुनियां में, जिस नवज पहिचान नहीं। वह मोक्ष कैसे जांव, जिसका सारित ईमान नहीं ॥ हीरा० ॥१॥ जो अनाथ की करे न रक्षा, उसे कहे श्रीमान नहीं । जोराग द्वप को नहीं छोड़े, वह भी साधु महान नहीं। विश्वास दे जावे बदल, उससा फिर बेईमान नहीं । जिसने इस मन को नहीं जीता, वह बहादुर बलवान नहीं। उसे सम दृष्टि कैसे कहें, जिसे पाप पुण्य पहिचान नहीं ।। २ ॥ उस भरोसा कैसे पाये, जिसके एक जवान नहीं । जो पक्षपात से कथन करे उसको भी कहे गुणवान नहीं । नेक काम से गुम रहा करता, उससा फिर शतान नहीं । जो जुल्म करे कातिल कहलाये, उसका पहिश्त मकान नहीं । जो इबादत नहीं करे, वह हिंद मुसलमान नहीं ॥ ३ ॥ जिसकी इज्जत नहीं दुनियां में, उसका होता जमान नहीं। जो लालच में था बेटी बने, यह भी बुद्धिमान नहीं। जो देश, धर्म की करे न संव', उसका जन्म प्रमाण नहीं। मुनि चौथमल कहे शिक्षा न धार, उससा कोई अज्ञान नहीं। जो वीर प्रभु का भजन करे, तो उस जैसा धनवान नहीं ॥ ४ ॥