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जैन: सुबोध गुटका !
(२७६)
नहीं सकते ॥३॥ चौथमल कहे प्रभु भजलो, पाप का फैसला करलो । बनालो काम मौके पे, फेर तुम कर नहीं सकते ||४|| -
३८२ उपदेश. ( तर्ज - पूर्ववत् )
करो कुछ गोर दिल अन्दर, साथ में क्या लेजावोगे । सचाव का काम तुम करलो, सदा आराम पावोगे || टेक ॥ अमूल्य वक्त को पाके, निन्द गफलत की सोते हो | सुनी को बे सुनी करके, नतीजा क्या उठावोगे || १ || कहे सत्संग की तुमको, बताते हो नहीं फुरसत । महफील में रात . खोते हो, गुना यह कहां छिपावोगे || २ || चले नहीं पेर. वाई वहां, मुलाजा ना गिने किसका । पालसी सामने • उसके, कहो कैसे चलावोगे | ३ || यहां चन्द रोज के लिये, चनाया आपने बंगला | करो महोबत यहां जिससे, उसी को • छोड़ जावोगे ॥ ४ ॥ बना यह खाक का पुतला, सदा रहता ..नहीं कायम | चौथमल की नसीहत पे, अगर ईमान लावोगे ॥ ५ ॥
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३८३ महावीर का भण्डा
[ तर्ज-मथुरा में आकर जन्म लिया ]
." दया धर्म का डंका दुनियां में बजवा दिया त्रशला