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जैन सुवोध गुटका |
शारने ग्रही मुझको, छुड़ालोगे तो क्या होगा ॥ ढेर ॥ मुझे मालूम न थी इसकी - कि, यह दंभी प्रपंची है । धोखा देके ले जाता है, छुड़ा लोगे तो क्या होगा || १ || चिड़िया को पकड़ ले बाज, इसी मानिंद करी इसने । अरे इस नीच पापी को, हटादोगे तो क्या होगा ॥ २ ॥ सुनो लक्षमण मेरे देवर, तुम्हारी भाभी पर आकर | पड़ी आफत बड़ी भारी, मिटादोंगे तो क्या होगा || ३ || दयालु कोई दया करके मेरी तकलीफ की बातें | अभी श्रीराम पे जाकर, सुना दोगे तो क्या होगा !! ४ ॥ तन से जेवर गिराती हूं, श्राना इस खोज को पाकर | मुझे निराधारको आधार, बंधादोगे तो क्या होगा ||५|| चौथमल कहे सुनो सजन, सिवा रो २ पुकारे है । कोई रघुनाथ से मुझको, मिला दोगे तो क्या होगा ||६|| २६ चेतन को शिक्षा. ( तर्ज - पंजी मुंडे. बोल )
मती लीजेरे २, बदनामी कितनो जीणो प्राणीरे || ढेर | ली बदनामी राजा रावण, हरी राम की राणीरे । स्वार्थ भी हुआ नहीं, गई राजधानीरे ॥ १ ॥ दियो पींजरे बापरे, कंश अनीति ठाणीरे । विरोध करीने मरयो हरिसे, हुई उसीकी हानीरे ॥ २ ॥ ली. बदनामी कौरवांने, नहीं बात हरिकी मानीरे | पांडवों की जीत हुई, महाभारत बखानीरे ||३|| ली बदनामी बादशाह ने गढ़ चित्तौड़ पर