SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन सुबोध गुटका। सा वखाना । इस न्याय से बंधाना, वक्ता सुना रहा है ॥३॥ जड़ चतन भिन्न जानी, वन निज श्रात्म ध्यानी । कहे चौथमल ज्ञानी-सत्र में समा रहा है ॥४॥ २४२ प्रिया प्रलाप. (तर्ज-दिलजान से फिदा ई.) ' पिया की इन्तजारी में जोगन बन फिरूंगी। जो कह जहां पै द्वंद्व, जाने से ना डरूंगी ॥ टेर ॥ किसी ने कहा पिया तो, पग्यत की नोख पर है। यहां पर भी जाके. देखा, ना मिला क्या करूंगी ! पिया ॥ १॥ किसी ने कहा जा मथुरा, किसी ने कहा जा गोकुल । ना मिला, वृन्दावन में, अब ध्यान कहां धरूंगी ॥२॥ कुमति के झांसे में श्रा, पिया विछड़ गर हैं। वह मिल जाय एक विरीयां, तो प्यार से लरूंगी ।। ३ ॥ पिया को.संग लेकर, रहूं ज्ञान के भवन में । कहे चौथमल पिया की, पहिया पकर तिरूंगी-11४11: : । –3x6+s. २४३ उपदेश. (तर्ज-- एक तीर फेंकताजा) जाती है उम्र तुम्हारी, प्रभु को भोरे भाई । गफलत में क्यों पड़े हो, अनमोल देह पाई ॥टर ।। सेना के बीच
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy