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जन मुयोघ गुटका।
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दुश्मन यही जाननारे, ले जासी यम द्वार । हे सुन सुन्दर ! चिन्ता लागी यह अति भारी म्हांका राज ॥५॥ देई रिस्वत यम ने रे, देदं नवसर हार । देई हाथ की मुदडी रे, रा कर मनवार । हो अन्नदाता रंग रस की करिये बातां म्हांका राज ॥६॥ गेली सुन्दर बावरीरे, गैला चैन यह होय । यम रिस्वत जो श्रादरे तो जग में मरे न कोय है सुन्दर ! थांका बोल पे हंसी आये म्हाका राज ॥७॥ हाल अभी श्राया नहीरे, पासी जमकी बात । सो रमो
आनंदमेरे, मोजां को दिन रात । हो अन्नदाता माकी अर्जी पर चित्त दीजे म्हांका राज |॥८॥दत तो अब श्रा गयोरे. मैं तो देखा नाय । बाल उखेड़ी सीससेरे, धोला नजर देखाय । हे सुन्दर यम को जासुम अगवानी म्हांका राज ।। || काल भृप अब पावसारे प्रत्यक्ष रहा चेताय । तेरा मेरा प्रेम यह अब रहने का नाय । हे सुन सुन्दर ! खान पान ऐश सब त्यागा म्हांका राज ॥ १०॥ मृगावती रानी तजीरे दियो कुंवर ने राज । सद्गुरु से संयम लईर नृप साध्या सब काज । हे सुन चेतनजी थे या विधि ज्ञान विचारो म्हांका राज ॥ ११ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद मुर चौधमल यं गाय । उन्नीसे सत्तचर चौमासो नोधपुर के मांय हो जीवराज थान देई ज्ञान समझावा म्हांका राज।।१२॥