________________
जैन सुबोध गुटका ।
....... ३७१. क्षमा.
[तर्ज-कोरो काजरिये ] सब नर धारोरे, यह क्षमा मोक्ष दातार . ॥ टेर।। महिमा उपशम की प्रभू, या वरनी सूत्र मंझार ॥१॥ जिन शासन को मूल है, है तप संयम' को सार ॥२॥ कर कर के क्षमा कई, तिर गए समुद्र संसार ॥३॥ खन्दक मुनि क्षमा करी । जब लिनी खाल उतार ॥४॥ धन्य धन्य : मेतारज.. मुनि, जाने सह्या परिसो अपार ॥५॥ गज सुख मुनि शिर खीरा धरिया, मुनि सही अगन · की झार ॥ ६॥सूरी ता निज कंथ ने, दिया जहर जिस वार ।।.७॥ क्षमा करी. ने सुर हुवो, यह पहले स्वर्ग:मुझार ॥ ८॥ चौथमल कहे क्षमा करो, हो. जावो भव जल पार ॥६॥
३७२ कन्या विक्रय निषेध.
.. (तर्ज-प्रेम बढ़ावोजी.) ... कलियुग. छायोजी, धर्म छोड़ अधर्म में दुनियां चित्त लगायोंजी ॥टेर ॥ पांच सात दलाल मिली; बुढा को सम्बन्ध करायोजी ॥ १ ॥ और , धन्धो सब छोड़, ही व्योपार चलायोजी । अपशकुन कर मूछ मुण्डाई, पिठी मर्दन करायोजी । बुढो बनडो, बन्यो खूब, श्रृंगार: सजा