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जैन सुबोध गुटका |
यांजी ॥ २ ॥ वान्ध सेवरो घोड़ा पर चढ, सुसरा के घर आयोजी । लोग देखने हंसे सांग यो, आछो वनायोजी || ३ || सुरत देख बुढ़े चालम की, कन्या को जी घबरायोजी ] कहे बाप से बेटी पे क्यों, कुठार चलायोजी ॥ ४ ॥ सुन कौन कन्या की चानी, लोभ जंगी के छायोजी । भटजी भी गर्जी दमडे का, परत करायोजी ॥ ५ ॥ लड्डू खाण्यां पंचो ने भी, नीति धर्म विसरायोजी | रक्षक भक्षक बनी घोर, अन्धर मचायोजी ॥ ६ ॥ कान पकड़ छारी के न्याय, बुढ़ो लाड़ी लायोजी । कहे लोकां से परमेश्वर, मारो घर मंडायोजी || ७ || बेटा पोता दौड़ दोहिता, कुटुम्ब देखवा श्रायाजी | माता दादी, नानी कहा किम, वाक्य सुनायोजी ॥ ८ ॥ तन की सरंदा कम जान, बुढ़ा ने वेद झुलायोजी | ताकत बढ़े इन काज श्राप, नुसखा लिखवायोजी || ६ || इम करता अल्प काल में, बुढो परलोक सिधायाजी । खुये बैठ विचारी वाला, रुदन मचायोजी ॥ १० ॥ पिता श्राय बेटी के धन पैं, अपनो
अमल जमायाजी | मात कहे मत रोए बेटी, यही भाग्य लिखायोजी ।। ११ । होनहार के आगे जोर नहीं, चाले किसको चलायोजी | पत्थर फेंक. शिर माण्ड भावी को,
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मिश ठरायोजी || १२ || कांई देख्यो यूं कही माता, हाथां को चुड़ो रखायोजी । श्राई अवस्था कठिन विरह ने, जोर ननायोजी ॥ १३ ॥ लज्जावान उत्तम नारी तो, तप कर
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