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(३२८) जैन सुबोध गुटका। देती है, कुछ भी न रहता मान ॥ ३ ॥ बुरा नशा है दारू का, सब भूल जाए वह भान । जाकर गिरता है नाली में, मुख पर मृते श्वान ।। ४ ॥ लाखों रूपों की होती है हरसाल में हानी । देश दुखी होगया इसी में, तो भी न तजते पानी ।।.५ ॥ अपना तो तुम, सुनजो ध्यान लगाई। गुरु प्रसादे चौथमल कहे, शहर सतारा माई ॥ ६ ॥ .
..:: . नंबर ४४४ . . .: . : (तर्ज--कमली वाले की) ..
. इस दुनियां के पड़दे से तूं तो, अवश्यमेव ही जावेगा। ले जावेगा संग में तूं तो, जो नेकी. बदी कमावेगा ।।टेर। नहीं अमर रहे जग से कोई सुरनर-इन्द्र भी बड़े बड़े। उनका कजा कर गई गटका, क्या तुझको भी नहीं अावेगा. ॥ १ ॥ रहती थी फौज लाखों तारे और उठाते हुक्म सभी उसका । जिस वक्त बने नहीं कोई सहाथी, जब मृत्यु गला दबागा ॥ २ ॥धन माल खजाना ये तेरा,रह जायेंगे सब ही याही । पितु-मात-भ्रात सजन सत्र ही, श्मशान बीच पहुंचावेगा ।। ३ ।। दुनियां के हाट में आकर के मत खाली हाथ.तू तो जाना नहीं तो परमव में आखिर. तु., जाकर के वहां पछतावेगा ॥ ४ ॥ मिला अमोल सु अव:सर यह, जिसका भी दिल में ख्याल करो.. कहे चौथमल करले सुकृत, परभव में तू सुख पावेगा॥ ५॥ .
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