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जैन सुबोध गुटका |
( २६७ )
वही भर, नहीं कोई ध्यान बचावेरे ॥ ८ ॥ रूप यौवन विज्जू को भलको, देखत ही पलटावरे । स्वार्थी यो संसार साथ, पर भव नहीं थावे ॥ ६ ॥ सुन उपदेश मुनि को राजा, वैराग्य बीच में छांवरे । राज्य तख़्त को त्याग करी, फिर तपस्या ठावेरे ॥ १० ॥ करणी कर केवल पद पाई, संयति मोक्ष सिधावेरे | गुरु प्रसादे चौथमल, गुणी का गुण गांवरे || ११ || पन्दरे ठाया साल चियांसी, उदयपुर में वेरे ||दल्ली दरवाजे धानमण्डी में, ज्ञान सुनावेरे ॥१२॥
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३६८ त्रुटि की पूर्ति,
( तर्ज - मनाऊं महावीर भगवान )
पाय व मनुष्य को अवतार, करो शुभ काम सदा नर नार || टेर || करनी बीच में रहगई त्रुटि, पूर्व जन्म मंकार | जिस की पूर्तिकाज श्राज यह, मिला है अवसर सार || १ || क्यों राचे परमाद बीच तूं, आयो मोक्ष के द्वार | मानां कल्पवृक्ष को काटी, बोवे याक गंवार ॥ २ ॥ मत पड़ मोह के फन्द मान तूं, है झूठो संसार | हरगिजें जावे नहीं साथ में, देखो किस के लार ॥ ३ ॥ बड़े बड़े रईस के संगमें, एक न गयो सवार । ऐसी जान सुयश ले प्राणी, करके पर उपकार ॥ ४ ॥ संवत् उन्नीसे साल चौरासी, लसानी बाग मंभार । 'चौथमल उपदेश सुनावे, भव जीवां हितकार ॥ ५ ॥
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