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जैन सुपोध गुटका । से संभालना ॥ २ ॥ संकट मोचन बिरदः आपको, हां विरद
आपको निराधार अाधार, कम रिपु.गालना ॥३॥ श्रोम् उपभ, तूं ही मम रक्षक, तूं ही मम रक्षक। तुं ही मेरे शीरताज, फन्दे से निकालना ।। ४ ॥ गुरु प्रसादे, चौथमल यू, चौथमल यूं, अर्ज करे हरवार, जरा तो निहालना ॥ ५॥ :
. . . . ३५० मनुष्य को विशेषता... (तर्ज-किस से करिय प्यार यार खुद गरज जमाताहै:) .
मनुष्य पशु से श्रेष्ठ, धर्म से ही बतलाया है॥टेर।। आहार, निन्द्रा, भय, भोग में, दोनों एक समान । है अविकता मनुष्य में, एक:धन पहचान, इसीसे बड़ा कहाया है ॥ १॥ पशु सदा खाता रहे, नहीं भक्षाभक्ष विचार। मनुष्य अमन पाहार का, तुरत करे परिहार, नीति में यह बतलाया है ॥२॥ पशु को.निन्द लेने का मित्रों, किञ्चत नहीं परमान । मनुष्य निन्द को छोड़ के घरे प्रभु का ध्यान, जान झूठी मोह माया है ॥ ३॥ पशु के भय बना रहे, हरदम दिल के म्यान । इजत और परलोक को, नर रखता औसान, पाप से दिल को मुडाया है ॥४॥ नहीं भान. मां: बहिन का, सेवे पशु व्यभिचार, मनुष्य रहे. में, त्याग करे परनार, धार के शील संवाया है ॥५॥ असरः फूल मखलुकात है, इसी लिये इन्सान, श्रवण मनन