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जैन सुवेध गुटका।
धन से कर उपकार, दुखी के दुख मिटाना ॥ ५ ।। गुरु प्रसादे, चौथमल कहे। हां चौथमलं कहे, पावोगे केवल ज्ञान, राखों तो शुद्ध भावना ॥ ६॥ . .
...३५४ तीन मनोरथ. . (तर्ज-सभिल हो श्रोता. शूगने, लागे ओ बचन जो ताजणा) ... सांभल हो श्रावक, तीन मनोरथ 'शुद्ध मन चितवो ॥ टेक ॥ श्रारंभं परिग्रह से कचं निवृतूं, दुर्गति को यो दातार । विषय कपाय को यो. मूल है, भमावे. अनन्त संसार ॥१॥ अत्तरण अंशरण अंनित्य अशाश्वती, निग्रंथ के निन्दनीक स्थान । जिस दिन इसको मैं त्यागन करू, सो दिन मारे परम कल्याण ॥ ॥ द्रव्य भाव कब मैं मुण्डन होऊ, दश विध यत्ति धर्म धार । तप जप संयम मार्ग. श्रादरी, वरूं अप्रतिवन्ध विहार ॥३॥ आज्ञा प्रमाणे श्रीवीतराग की, चालू यथार्थ धर ध्यान । जिस दिन निग्रन्थ-पथ में विचरूं, वह दिन मारे परम कल्यानं ॥४॥ कब ..सब पाप स्थानकः छोड़ने, करी आलोचना जीव खमाय । जिस शरीर. ने प.ल्यो प्रेम से; उससे.ममता मिदाय ॥ ५॥चारों ही श्राहार को त्यागन करी, मृत्यु पण्डित परधान .चारों, ही शरणा मैं धारण करूं, वह दिन है. परम कल्यान ।। ६॥ धार. काएठे में प्रसिद्ध नागदों,