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________________ जन सुबोध गुटका । (२५७) me श्रआया पिचासी सेखेकाल । गुरु प्रसादे चौथमल कहे; पॉप दशमी मंगलबार ।। ७ ।। . ३५५ राजनति की विनंती. (तर्ज छोटी बड़ी सईयाए) श्री जादुपति महाराज, तोरण से तुम . मत जावना ॥ टेक ।। मिन्द वनी जब श्राप पधारे, हां आप पधारे ।। हो गज ५ असवार, लागो तो तुम सुहावना.॥ १ ॥ पशुओं की तुम टेर सुनीने, हां टर सुनीने । पलट गये उसवार, कोई तो समझावना ॥२॥ छोटी बड़ी सैयाएं, नेम को मनावना, हां नेम को मनावना । नेम गये गिरनार, यही तो पछतावना ॥३॥ राजीमति को, संयम लूंगा, हां संयम लूंगा । छोड़ सभी परिवार, यही है मेरी भावना ॥ ४ ॥ चौथमल कहे संयम लेकर, हां संयम लेकर । किना श्रातम कल्याण, मुक्ति का फिा पावना ।। ५ ॥ .. . ३५६ दया की महत्वता. .... [तर्ज-मेरे स्वामी वुलालो मुगत में मुझे ] गुरु तिरने का मार्ग बताया हमें, मिलती मुक्ति दया से जिताया हमें ॥ टेक ॥ दया ही संसार में, भवसिंधु
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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