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( २२६ )
जैन सुबोध गुटका |
देखी गेरी फूल गुलाबी, जिस पे तूं ललचावं । मगर युवानी कल दल जावे, जैसे फूल कुम्हलावेरे ॥ सेलानी० ॥ ॥ १ ॥ झूठ कपट कर माल कमाई, ऊंचा महल झुकाया । श्रोड़ दुशाला सोवे सेज में, मान वदन में छायारे || सेलानी० || २ || मुख में पान गले विच गहना, जब घड़ी लटकावे । शिर टेड़ी पघड़ी चाले अकड़ी, फूला अंग नहीं मांवेरे || सेलानी ० || ३ || सज श्रंगारी सुन्दर नारी तेरे श्राज्ञाकारी । सम्पति देखी कर तू सेखी, ताके पर की नारीरे ॥ | सलानी ||४|| हुए भ्रा हजारी छत्र धारी, पाण्डव से तपकारी | बादल छाया ज्यूं विरलाया, रावण सा चलकारीरे ॥ सेलानी० || ५ || निकले श्वासा हो वनवासा, चले साथ नहीं कौरी । छीने भूषण बना नगन तन, फूंकगा ज्यू होरी रे || सेलानी० ॥ ६ ॥ एम विमासी, तज मोह फासी, भजले तू शिव वासी । गुरु प्रसाद चौथमल ये सत् शिक्षा प्रकाशीरे ॥ सेज्ञानी० ॥ ७ ॥
३१८ भक्त प्रार्थना.
( अम्मा मुझे छोटीसी टोपी दिलादे )
प्रभु मुझे मुक्ति के मार्ग लगादो । मार्ग लगादो पाप हा हां मुझे आपकी राह बता दो || ढेर || अर्ज करूं मैं पैया परूं मैं, भव सागर से जल्दी तिरादो || प्रभु० ॥ १ ॥