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जन सुवोध गुटका।
(२७७)
फेर यमुना के दो माग किये, देखो जब वंशी वाले न ॥२॥ सहस्र नागने छन किया, नहीं पड़ा बूंद जब पानी का । किनी जब गोकल को पावन, देखो जब बंशी वाले ने ॥३॥ मात यशोदा प्रसन्न हुई, और नन्दने महोत्सव खूब किया । घर घर में श्रानन्द मना दिया, देखो जब वंशी वाले ने ॥ ४ ॥ वीज कला जूं आप बढ़े, खेले घुमे फिरे श्रांगन में । दी धूम मचा लड़कों के संग, देखो जब घंशी चाले ने ।। ५.॥ यमुना के तट पे खेल करा, गई डूब गेंद कालीदह में । फेर नाग. नाथके गेंद लिया, देखो जब बंशी वाले ने ।। ६ ।। दही दूधका दाण लियां, ग्वालन से आप मुरारी ने । गिरीराज उठाया अंगुली पे,जय काली कम्बली वाले ने ॥ ७ ॥ सज्जन का संकट दूर हरा, और मारा कंश अन्याई को। फिर जीत का डंका त्रिखएड में, बजवा दिया वंशी वाले ने ॥ ॥ त्रियासी साल उदयपुर में, यह चौथमल चौमास किया। उपकार कराथा भारतमें, नन्दजी के कनैयालाले ने ॥ ६॥ ... ... .
३८० समय से सावधान..
(तर्ज-यह फैले घाल विस्नरे), : वक्त हरगिज.न सोने का, बनो होशियार तुम झटपट.! 'जमाना रंग बदलता है, करो विचार तुम अटपट ॥ टेर॥