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जैन सुबोध गुटका ।
(५६) soonuunnan 'छोड़दे ॥ २॥ परशु ने क्षत्री हन, शंभूम ने मारा उसे । शभूम भी यहां ना रहा, तू मान करना छोड़दे ॥ ३॥ कंस जरासिंघ को, श्री कृष्ण ने मारा सही। फिर जर्द ने उनको हना, तू मान करना छोड़दे ॥ ४॥ रावण से इंदर दवा, लक्षमण ने रावण को हनान वह रहा न वह रहा, तू मान करना लोडदे ॥ ५ ॥ रच्च का हुक्म माना नहीं, अजाजिल काफिर बन गया। शैतान सब उसको कहें, तू मान करना छोड़दे ॥६॥ गुरुके प्रसाद से कहे चौथमल प्यारे सुनो। आजिजी सब में वड़ी, तू मान करना छोड़दे ॥७॥
८८ सदुपदेश. (तर्ज- गजल, बिना रघुनाथ के देख नहीं दिलको करारी है.)
कर सलंग ए चेतन ! तेरा इसमें सुधारा है। देखले ज्ञान दृष्टीस, भाउ यह जगत सारा है । टेर ॥ यह नर तन रत्नमा है, यन्न कीजे जिताता हूं । सदा रहता न यहां कोई, चंद दिनका गुजारा है। कर॥ १॥ जो लखपती तू होगा, तो रक्षा कर अनाथों की। आगे को साथ ले खर्चा, और तो धन्ध सारा ६ ॥२॥ अरे घट टूट जाता है, रह जाती है सुगंधी । नेकी सदा रोशन, रहेगा तरी अप प्यारा ॥ ३ ॥ शह. नशाह हो चुके लाखों, गये तज तख्त शाहीको । नहीं धन धान रानी दूत.संग उनके सिधारा है ॥ ४ ॥ सो करल काज तू ऐसा, हो सुख चैन आगेको । गुरु हिरालाल के शिष्य ने, किया तुझको इशारा है ॥५॥
८६ कपट निषेध. (तर्ज--गजल, या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा)
जीना तुझे यहां चार दिन,तू दगा करना छोड़ दे पाक रख दिलको सदा, तू दगा करना छोड़ दे ॥ टेर ॥ दगा कहो या