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जैन सुवोध गुटका।
॥टर ।। तुम कौन कहाँ से आया; यहाँ कौन पुरुष तुम्हें लायाजी | दो शंका मेरी निवारी ॥१॥ कौन तात भ्रात कहो सारा; मत राखो शंका लगाराजी। मुझे कहो आप विसतारी ॥२॥ [टेर फिरी] प्रमाणिक पुरुष कोई जानी, सीता बोली यूं बानी ।। टेर । लजा से नीचे नैन कर दीना, कर धुंघट तन ढक लीनाजी। फिर को सुनो कहानी ॥१॥ जनक पिता भामंडज भाई, पति अयोध्यानाथ सुख दाईजी । दशरथ-कुल वधु वखानी ॥ २॥ लक्ष्मण खरदुपण के साथ, लड़ते फिर गये रघुनाथ जी। पीछे पाया रावण अभिमानी ॥३॥ ये चुरा के समतो लाया, मैंने बहुत इसे समझायाजी। लेकिन मेरी नहीं मानी ॥४॥ इसके दिल में बईमानी, मिलेगी मिट्टी में राजधानीजी । इसकी या आई मोत निशानो ॥५॥ कहें चौथमल यूं सीया, मेरे छुड़वाया पियाजी । है रावण को दुखे दानी ॥ ६ ॥ ५८ हनुमान का श्रीराम से कह्वेना. ...
(तर्ज-कव्वाली) ) . प्रभु तेरी कृपा से आज, वल इतना रोखावें हम । राक्षस द्वीप से लंका, उठाके यहां पै ला हा ॥१॥ रावण सहित कुटुम्ब सारा, बांध के ला धरें प्रभु पां। कहो निश रावण का, करें ना चार लावें हम ॥२॥ सत्यवती सती सीता को, लाऊं मोद से यहां पर । हुक्म दीजे कृपासिन्धु, 'कार्य करके दिखावें हम ।। ३ ।। चौथमल दाम कहे