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.. जैन सुबोध गुटका ।
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थावेजी । व भूख प्यास विसराई ॥ १ ॥ दस बीस दिनों
की आशा फिर करसी प्राण विनाशाजी । यह देर पड़े
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हुण माँई ।। २ ।। तरस्यो नीर पे जावे; गरजी निज गरज
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वेजी | दुखिया के धीरज नांई ॥ ३ ॥ सुग्रीव अलगरज रहावे, मतलबी जगत कहावेजी ।
या चौथमल दर
साई ॥ ४ ॥
५६ श्रीराम से लक्ष्मण का कहना : ( दर्ज - बनजारा )
सुन लखन उठे जोश खाई, लिया धनुष बाण कर माई || टर || ऐसा क्रोध बदन में छाया, 'पृथ्वी परवत थरायाजी | कहे सुग्रीव पां श्रयी ॥ प्रभु तरु तले कष्ट उठावे, तु महलों में मोज उड़ावेजी । थने तनिक लाज नहीं आयी || २ || वर्ष समान दिन जाने, छे गुणी रेन हाजी | सोबती है तुझ मांई ॥ ३ ॥ रोगी दवा वैद्य से खावे, हो निरोग उसे विसरावेजी । अत्र लो खुद वचन निभाई ॥ ४ ॥ नहीं तो शाहा शक्ति की नाइ, दूं परलोक पहुंचाईजी | पड़े सुग्रीव चरण के मांई ॥ ५ ॥ फिर ये जहाँ रघुराई, कहे शोध करां अब जाईजी | ये ऐसी चौथमल गाई ॥ ६ ॥
|| ५७ सीता से विभीक्षण का कहना ( तर्ज - बनजारा )
पूछे विमीक्षण हितकारी, तुम कौन पुरुष की नारी