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________________ .. निवेदन। Dec1 . प्रिय पाठको..आप यह अच्छी तरह से जानते हैं कि कविवर सरल स्वभावी पण्डित मुनि श्री हीरालालजी महाराज के सुशिष्य जगत्, पल्लम प्रसिद्ध वक्ता पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने केवल ललित ही नहीं, किन्तु प्रभावशाली और अति ही सारगर्मित ध्याख्यानों द्वारा संसारी जीवों के साथं अनेकों उपकार समय समय पर किये, तथा श्राज भी उसी प्रकार करने में लगे हुए हैं.। इन उपकारों को यहां दर्शाने की न तो हमारी मनशा हैं और न हमारे में इतनी सामर्थ्य है। 1 जब मुनि,प्रवचन करते हैं उस के वच बीच में आप अपने बनाये हुए उपदेश जनक पदों को कह कर, जनता का.चित्त धर्म मार्ग की ओर आकर्षित करते है। वे पद समय पर पृथक् पृथक् और छोटे छोटे पुस्तकाकारों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं । तथापि इससे जनता का मन संतोष नहीं हुआ, उनका इससे भूख न बुझी । जनता चाहती थी कि एक ही जगह बैठकर अापके अभी तक के सभी स्तवनों के अमृत मय रस को पान करने का, एक ही समय में मजा चख सके । तब हमने साहित्य प्रेमी पण्डित मुान श्री प्यारचन्दजी महाराज से आग्रह किया । बस यह उन्हीं मुनि श्री की कृपा का सुफल है मुनि श्री के रचे हुए जितने भी स्तवन नये और पुराने, हम आज तक मिले, हमने उन्हें इस संग्रह में रखने की ओर भरपूर चेष्टा की है। ___इस में आपके सुख के साधन है, मन संतोष का मसाला है, परलोक को विगाव देने वाले कार्यों का कथन है, लोक और परलोक को सुधार ने के साधनों का सम्मिश्रण है, जन्म और मरण के दुख ददौ की ओर आपका ध्यान दिलाया गया है, और जगत् की धांधली में यम दूतों की कठोर करतूतों का वर्णन कराया गया है । इतना सव होने पर भी, एक
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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