________________
( ७२ )
जैन सुबोध गुटका !
उसकी याद में । हसर तक नहीं भूलते, दुनियां से मतलब कुछ नहीं || ४ || चौथमल कहे दोस्ती, मालिक से तेरी लगगई । फिर दीन हो या बादशाह, दुनियां से मतलब कुछ नहीं ॥ ५ ॥
१०६ आयु चंचलता.
(तर्ज--अटारियां पे गिरारी कबूतर श्रीशत )
उमर तेरी सगगगगगगग जाय ॥ टेर ॥ तू तो कुटुंब म्याति के अन्दर, मुर्ख रह्योरेरे लोभाय-उमर० ॥ १ ॥ धन राज्य में गर्भ रह्योरे, खबर पड़े कछु नाय ॥ २ ॥ कर स्नान पोशक सजे है, इतर फुलेल लगाया || ३ || सुंदर गोरी तेरो, चित्त लियो चोरी, जिन संग रह्यो लिपटाय ॥ ४ ॥ डाव अणि पर जैसे जल बिंदु, ज्यू जोवन भोला तेरो खाय ॥५॥ करले तू कुछ सुकृत करना, वख्त अमोलक पाय || ६ || चौथमल कहे सद्गुरु तुमको, व २ समझाय - उमर तेरी सगगग ॥ ७ ॥
११० शराब निषेव .
"
( तर्ज- या हसीना बस मर्द ना, करवला में तू न जा ) अकल भ्रष्ट होती. पलक में, शराब के परताप से । लाखों घर गारत हुए, शराब के परताप से ॥ ढेर ॥ शरावी शोक महा बुरा, खुदकी खबर रहती नहीं । जाना कहां जाये कहां, शराब के परताप से ॥ अकल ॥१॥ इज्जत और दानीशमंदी, जिस पर दे पानी फिरा । धनवान कई निर्धन बने, शाय के परतापसे ॥ २ ॥ वकते २ हंस पड़े, और चौक के फिर से उठे । वेहोश हो हथियार ले, शरात्र के परताप से ॥३॥ चलते २ गिरपड़े, कपड़ा