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जैन सुयोध गुटका।
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निश दिन कर रहा । ख्वाब के मानिंद समझ, तूं राग करना छोड़दे ॥ ४॥ जीते जी के नाते सब, ये प्राणप्यारी
और अजीज । आखिर किनारा वो को, तुं राग करना छोड़दे ॥ ५ ॥ इन्द्री विषय में मुग्ध हो, गज मीन मधुकर मृग पतंग | परवा न रखते प्राण की, तूं राग करना छोड़द ॥ ६॥ हिरण वो है जड़ भरतजी, भागवत का लेख है । सेठ एक कोड़ा बना, तूं राग करना छोड़द ॥७॥ पृथ्वीराज मशगुल हुआ, संयोगनी के प्रेम में। गई बादशाही हाथ से, तूं राग करना छोड़दे ॥८॥ वीर भापे वत्स गौतम, परमाद दिलसे पहरो । श्रान प्रगट ज्ञान कंवल, राग करना छोड़दे ॥ 8 ॥ गुरु के प्रसाद से कहे चौथमल वीतराग हो । कर्म दल हट जायगा, तूं राग करना छोड़दे ॥ १० ॥
३६२ द्वेष परित्याग.
(तर्ज पूर्ववत् । चाहे अगर श्राराम तो तं, द्वेप करना छोड़दे। कुछ फायदा इसमें नहीं तं, द्वेप करना छोड़ दे।। टेर ।। द्वेषी मनुष्य
की देख सूरत, खून बरसे श्राखसे । नसीहत असर करती , नहीं, तूं द्वैप करना छोड़दे ॥ १ ॥ बहुत अरसे तक उसका .पाक दिल होता नहीं। बने रहे पद ख्याल हरदम, द्वेप