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________________ 7 (२८) : जैन सुधोध गुटका । करना छोड़दे ।। २ ।। पूछा हमें हम हे बड़े, मत बात करना गरकी । दुवैल बने यश औरका सुन, द्वेप करना • छोड़दे ।। ३.॥ देख के जरदार को,या संखी धनवान को। क्यों जले ए वहया, तू द्वप करना छोड़द ॥ ४॥ हांकमी . या अफसरी गर, नौकरी किसकी लगे। सुन के बने नाराज क्यों, तूं द्वप करना छोड्दै ।। ५ ॥ देख गजसुखमाल को द्वष सौमल न किया । दुर्गति उसकी हुई, तूं द्वेप करना छोड़दे ॥ ६ ॥ पाण्डवों से कौरवों ने, कृष्ण से फिर कंस न । विरोध कर के क्या लिया, तूं द्वेष करना छेड्दे ॥ ७॥ माता पिता भाइ भतिजी, दास अरु.५क्षी पशु । तकलीफ जया देता उन्हें, तू द्वंप करना छोड्दे ॥ ८॥ गुरुं के प्रसाद से, कहे चौथमल सुनल जरा । ज्यारमां यह पाप है, तूं द्वेष करना छोड़दे ॥ ६ ॥ . .. ' www.::: 5/३६३ क्लेश परित्याग. (तर्ज-पूर्ववत्) । श्राकवत से डर जग तुं, क्लेश करना छोड़ दे। महापीर का फर्मान है, तुं क्लेश करना छोड़दे ॥ टेर ।। जहां लड़ाई वहां खुदाई, हो जुदाई ईश से.. इत्तफाक गौहर क्यों सजे, तं क्लेश करना.छोड़दे ॥ १॥ ना बटे लड्डू लड़ाई, बीच कहावत जक्त में.। बेजा कहे बेजा-सुने, तूं क्लश करना 19.
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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