________________
जैन सुबोध गुटका |
( ६७ )
पान हाथ घड़ी बांधे, चले अकड़तो टेड़ में । जेन्टिलमेन नैन ऐनक धर, पूछा वोले देर में ॥ २ ॥ घोड़े चढ़ी शिकारां खेले, समझे नहीं कुछ मेहर में । दुर्लभ नर तन पाय फेर क्यों, पढ़े चौरासी फेर में || ३ || दो घड़ी जिनवर को भजले, अए मन आठों पहर में । चौथमल हित शिक्षा देवे. जयपुर सुन्दर शहर में ॥ ४ ॥
१०१ हृदयोद्गार.
( तर्ज - बिना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है )
अर्ज पर हुक्म श्रीमहावीर, चढ़ा दोगे तो क्या होगा । मुझे शिव महल के अन्दर, बुलालोगे तो क्या होगा || टेर ॥ सिवा तेरे सुनेगा कौन, मुझ से दनि की घरजी । मुझे यद फेल के फन्दसे, छुड़ा दोगे तो क्या होगा ॥ श्ररज० ॥ १ ॥ जगह वहां पर न खाली है, क्या तकदीर ही ऐसी । न मालूम क्या सवव शुरू है, मिटा दोगे तो क्या होगा ॥ २ ॥ पढ़ी है नाव भवजल में, चले जहां मोह की सर सर । तो करके महर. बानी जब, तिरा दोगे तो क्या होगा ॥ ३ ॥ जो है तेरी मदद मुझ पर, तो दुश्मन कुछ नहीं करता । भरोसा ही तुम्हारा है, निभालोगे तो क्या होगा ॥ ४ ॥ गुरु हीरालालजी गुणवंता, दिखाया रास्ता शिवपुर का । खड़ा है चौथमख वहां पे, बुलालोगे तो क्या होगा ॥ ५ ॥
१०२ प्रभु दिग्दर्शन
( तर्ज- या हसीना बस मदीना, करवला में तू न जा ) दिलके अन्दर हैं खुदा, दिलसे खुदा नहीं दूर है | दिल