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जैन सुबोध गुटका।
(३३)
दान दया को लावो ले, आगे सुख पाजेरे ॥ १॥ सत्संग में प्राणी तू तो, वेगो २ आजेरे । साथीड़ा ने भाइला ने, लारे लाजेरे ॥ २॥ पर नारी और वैश्या के संग, भूल चूक मत जाजेरे। दारुने तू खोटो जाणी, मन पीजे पिलाजेरे !॥३॥ फागण में गेरया के संग, डफड़ा मति बजाजेरे । भूडो २ मुख से बोली, मति जन्म गुमाजेरे ।। ४ ॥ गधा की असवारी करने, मत झाडू का चंवर दुराजेरे । मत दोरजे पाणी ने, मत धूल उड़ाजेरे ॥५॥ मनुष्य जन्म का हाट में श्रा,खाली हाथ मत जाजेरे । काम क्रोध मद लोम वणिक से, मति ठगाजेरे ॥ ६॥ चार दिन की है या जवानी, मत मूंछां बंट लगाजेरे । अजुन भीम भी नहीं रया, करता जोई छाजेरे ॥ ७॥ भांग तमाखु गांजो छोड़ी, पूरो प्रण निमाजेरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे जिन गुण गाजेरे ॥८॥
४८ दान की महत्वता. (तर्ज-सेवो श्री रिष्टनेम २ जहां घर वरते कुशल जी क्षेम)
दीजो दान सदारे २ जहां घर वरते सुख संपदा ॥टेरा पूर्व भवमें वेराई थी खीर। शालिभद्र हुए कैसे अमीर ॥ १॥ धन्ना सेठने दियाथा दान । तो पग २ प्रगटा उनके निधान
॥२॥ सुवाहु कुंवरजी हुआ पुण्यवान । दानको प्रताप .. बतायो वर्द्धमान ॥३॥ रिद्धि सिद्धि नव निधि धरे।शुद्ध भाव • सुं जो दान करे ॥ ४ ॥ दानेश्वरी की महिमा अपार । स्वर्ग