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जैन सुवोध गुटका।
चलती वैरा थारे. कोई न लार ॥४॥.चौथमल.कहे मानो शिक्षा सुजान चालो मुक्ति में करोधिर्म ध्यान ॥ ५ . . . :
१८० रावण मंदोदरी संवाद. .. .. . (तर्ज-दियो दान सुपातर, पाया.सुख सम्पत धना सेठजी) .
सीता प्रीतमं दो पाछी सोपजी, यह अर्ज इमारी, सीता ॥ टेर। सीता नहीं देसां निश्चय जाएजे, करसां.पटराणी, सीता०॥टेर ॥ सीता पाछी सोपदो सरे, वाजी रहवे पेश । सुवागपणो म्हारो रहे-सरे, मानो लंक नरेश । नहीं तर श्राप का कुल विषे खरे, लांगे कलंक विशेष. ॥ यह० ॥१॥ नारी जाति अकल की हीनी, बात करे तू बेकी । सीता जैसी रूपवान मैं स्वप्ना में नहीं लेखी। मन धार्यों मारो करूं सरे तूं पण लीजे देखी । कर० ॥२॥थे प्रीतम छाया भोग विषे, थाने सूझे नहीं लगार । रामचंद्र संग, सेन्या .लेकर, आय रह्या ललकार । लक्षमण जिनके संग में सरे, है बांका सरदार ॥ यह० ॥ ३ ॥ राम लक्षमण दोनों बनवासी, फौज नहीं हैं पास । लंकागढ़ के पाड़ा प्यारी भरा. समुद्र.खास.। यहां पर . कोई नहीं भालके सरे, श्ख पूरा विश्वास ॥ कर०. ॥४॥ यह ; जनकराय की पुत्रिका सरे, सीता इसका नाम । सत्यवंती
और है पतिव्रता, जाने मुलक.तमाम । पर पुरुष को कभी न वच्छे, क्यों होवे बदनाम ॥ यह? ॥ ५॥ विभीषण और कुंभकरण यह हैं मेरे दो भ्रात । सीता पाछी सोपते सरे, लानें क्षत्री जोत । मत बोलो मनोदरी-स. थारी नहीं सुहावे बात-॥ कर०॥ ६॥ सीता हाथ आसी नहीं सरे, लंक"हाथ : लेजावी काम अन्ध पहिलें नहीं समझे; पीछे ही पछतावे . चौथमल कहें भावी प्रचल, एक आस नहीं आवें ॥ यह ॥७॥