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जैन सुबोध गुटका। (१२६) पहिले, भूमि को देखो छोटे मोटे जीवों को बचाया करो ॥ दया० ॥ १॥ बोलो तो पहिले, दिल में सोचलो । ना किसके दिलको दुखाया करो ॥ २ ॥ बहक का माल न, खाओ कभी तुम । ना परधन पे ललचाया करो ॥३॥ चाहे हो गोरी चाहे हो काली । परनारी से निगाह न लगाया करो ॥ ४ ॥ पास हो माल खजाना तुम्हारे, पर जीवों का दुःख-भिटाया करो ॥५॥ चारों ही पाहार न रात में खाओ, ऐसी बातों को दिल में जमाया करो ॥६॥ चौथमल कहे पाठों ही पहर में, दो घड़ी प्रभु को: ध्याया करो ॥ ७॥
२०० उठो लक्षमण २. (तर्ज-विना रघुनाथ के देखे नहीं दिलको करारी है)
लगा जो तीर लक्षमण के, पड़े गश खाके भूमी पर । कहे तब राम आसू भर, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥ टेर ।। सीया रावण के कब्जे में, और तुमने करी ऐसी । मेरा इस बनमें घेली कौन, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ।। लगा।॥१॥ अरे रन बीच सेना को, सिवा तेरे हटावे कौन । गिराया क्यों घनुप तेने, उठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥२ ।। तेरी हिम्मत पे ही बन्धु, चढ़ाई की जो लंका पे | बंधावो धीर अब हमको, उंठो लक्षमण उठो लक्षमण ॥ ३ ॥ रहे गों यहां दुश्मन, इन्हों के गर्व फो गालो।नहीं यह वक्त सोने का, उठो लक्षमण उठो लक्षमण॥४॥