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________________ जैन सुबोध गुटका । (३११) mmmmmmranamammimammanmmmmmmmmwwmarwarnmarrrrrnwormonam में, धन्य धन्य ते अणगार । हारी बेनी धन्य धन्य ते अणगार, ऋषभजी करी बेटिया बोलेरे ॥ ८ ॥ . नम्बर ४२२ [ तर्ज-कैसे गुरु गुणवानों ने] . महावीर ने अहिंसा का,झण्डा फरराया है। जब से ही. भारत देश में,आनन्द छाया है । टेक ॥ हर जगह पै. घूम कर, प्रचार जो किया । दे दे कर के सत्य बौद्ध,फिर अज्ञानहटाया है.॥ १ ॥ थे अज्ञात तत्व के, कुछ भी न जानते । . भूले हुए को रास्ता, सीधा दिखलाया है ॥२॥ लाखों पशु को होमते, लाते नहीं दया । उन्ह के हृदय में करुणा.. का, अङ्कुर प्रकटाय है ॥३॥ तारीफ हमसे आप की,जो हो, नहीं सकती । महान् किया उपकार, सब को ही जगाया है ॥४॥ कहे चौथमल भूले. न हम, अहसान' आपका, इगतपुरी में प्राय के, चक्कर में गाया है ॥ ५ ॥ ४२३ नम्बर [तर्ज-बापुजी केरी] तप की झले छे तलवार, प्रभुजी केरी तपकी भूलेरे। तप की झूले छ तलवार,वीरजी केरी तप की झूलेरे।।टेक।
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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