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जैन सुबोध गुटका । (३०६) सवारियां, वहां तो परवाणे विहार । होरे जाया वहां तो अरवाणे विहार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ २॥ यहां तो पोदो छो जाया मुखमल के दोलिये, वहां कंकराली भुंवार । होरे जाया वहां कंकराली मुंवार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥३॥ यहां तो बने छे विविध भोजन तरकारियां, वहां पर तो निरस आहार । होरे जाया वहां पर तो निरस श्राहार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ ४॥ यहां तो हाजिर छे साना रूपानी थालिया, वहां दारु पात्र मझार । हारे जाया वहां काष्ट पात्र मझार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ ५ ॥ यहां तो किया न हाथ नीचा उमर भर, मांगे वहां हाथ पसार । होरे जाया मांगे वहां हाथ पसार, जम्बूजी केरी माता कहेरे ॥ ६ ॥ दो वीश परिपा जाया जितना दोहिला, तूं सुखमाल कुंवार । होरे जाया तूं सुखमाल कुंवार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥ ७ ॥ विविध भांति से समझायो कुंवर ने, मानी न एक लगार । होरे जाया मानी न एक लगार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥८॥ संयम दिलायो माता महोत्सव करीने, होगए जम्बू अणगार। हारे जाया होगए जम्बू अणगार, जम्बूजी केरी माता कहेरे ॥६॥ चौथमल कहे छोटी में आय के, साल इठ्यासी मझार.। होरे जाया साल इठयासी मझार, जम्बूजी केरी . माता कहरे ॥१०॥