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(३०८) जैन सुबोध गुटका । . marrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrwammam
नम्बर ४१६ - (तुर्ज-इलाजे दर्द दिल तुम से)
जगत के बीच नारी की, बड़ी अद्भुत माया है। सुरासुर इन्द्र लो मानव, नहीं कोई पार पाया है ।। टेक ।। निशाना नैन से मारे, लगा के हाथ के झाले । बिना कसूर कइयों के, शीष इसने.कटाया है ॥ १॥ बड़े प्रालिम व फाजिल हो, बेरिष्टर या कोई हाकिम । करे पागल उन्हें छिन में, पास नापास बनाया है ॥ २॥ सरासर हार हाथों से, छुपाया देखलो इसने । अरे निर्दोष कन्या पे, तोमत कैसा लगाया है.॥३॥ नृप परदेशी की प्यारी, थी सूरीकता वह नारी । खिला कर जहर प्रितम को, गला उसने घुट:या है ।। ४ । इसी मुभाफिक हुई यह वात, जो मंत्रि ने सुनाई है । कहे यों चौथमल यहां सार, थोड़े में ही बताया है ॥ ५॥
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नम्वर.४२०. : . : . (तर्ज-बापुजी फेरी भिटियेरे )
माता कहे थे उसवार, जम्बूजी केरी माता कहेरे । माता कहे छे उसवार, कवरजी केरी मावा कहेरे ।। टेक ।।; साधुपणा की जाया कठिन छ क्रिया, चलनो है.खाण्डा की धार । हारे जाया चलनो है खाण्डा की धार, जम्बूजी केरी माता कहरे ॥१॥ हाथी घाडानी यहां तो करो