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जैन सुवोध गुटका।
राम ले फौजों भारी। रहा गर्वधरा परिवार का । हुआ क्षण में उसका मरना । यह० ॥२॥ पद्मोचर ने कुमति कमाई, सती द्रोपदी को भंगवाई। पीछे तो वह गया घबराई । देखा तेज मुरारका, जब लिया सती का शरना ॥ यह० ॥३॥ देख कुरान शरीफ माही, खोल सिपारा अठारवां भाई । गैर औरत से लो सर्म वचाई । है फरमान परवर दिगार का, जरा पाकवत से डरना ।। यह० ॥ ४॥ तिनो न्याय दिये सुनाई, चातुर का दिल रहा हुल साई । मूर्ख के दिल जरा नहीं भाई, वह वासी नई द्वार का, उसे है चौरासी फिरना ॥ यह ॥५॥ चौथमल तुमको समझावे, नाहक पर नारी के जावे, फिर इसमें क्या नफा उठावें । मत बने पात्र धिक्कार का,,गुरु कहा मान हो तिरना ॥ यह० ॥ ६॥ .:
२७२ मनुष्यं भव.
(तर्ज-गजल दादरा) अब पाकें मांनुवं भव रत यत तो करो । सद्गुरु से सुन के.बेन हिये ज्ञान तो धरे ॥ टेर । यह राग द्वेष जाल बीच, मत कोई परो, यह सात व्यसन बहुत बुरे तक तो करो । अब०॥१॥ अब बांध बांध पाप पोट, सिर पे क्यों धरों । होगा हिंसाब फेर, आंकवत से डरो। अब० ॥३॥ यह हिंसा झूठ चोरी; मैथुन परिग्रहो। विन त्यागे मिजमान, दोजख को खरों ॥ अव०॥