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जैन सुबोध गुटका |
६४ दारू से होती हुई दुर्घटना,
( तर्ज- मांड )
हो सरदार थें तो दारुड़ा मत पीजो म्हांका राज || ढेर | श्राम फले परिवार सेरे, मउया फले पत खोय । जाका पानी पीचतारे, तामें बुद्धि किम होय || हो || १ || पीपी प्याला हो मतबाला, हरकांई गिरजाय । गाली देवे बेतर हरे, सुध बुध को विसराय ॥२॥ वमन होय बाजार मेंरे; मखियां तो भिनकाय । लोग बुरा थाने कहेरे; मांसु सुना न जाय ॥ ३ ॥ इज्जत धन दोनों घटेरे, तन सुं-होय खराब | चौथमल कहे छोड़ो सज्जन; भूत न पीयो शराब ॥ ४ ॥
६५ स्त्री शिक्षा
( ४४ )
( त - वनजारा )
सखि मान कहन तू मेरी; जिससे सुधरे जिन्दगी तेरी || || फिरे जोबन में मद माती । नित नया शृङ्गार सजाती जी । नानाविध गहना पहरी ॥ सखी ० ॥ १॥ हो परमेश्वर से राजी तू मतकर नखरा बाजी जी । ऐसी वख्त मिले कव फेरी ॥२॥ ऐसी जान गफलत तज दीजे, दया दान बीच जस लीजे जी । जो चले वहां पर लेरी || ३ || तेरी पुष्प सी कोमल काया | तापे कामी भंवर लुभाया जी । सो होगा राख की ढेरी |४| तू. जाने कंथ शुभ प्यारा न करे कभी किनाराजी । है श्वास वहां तक देरी ।। ५। तुझे वन में छोड़ के टरके, वो दूजी कामिन वरके जी नहीं याद करे कि वे री ॥ ६ ॥ पुन्य पाप का तू फल पावे,वहां
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