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जैन सुबोध गुटका।
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दुःख मिटावे ॥३॥ पुरुषारथ कर रामचन्द्रजी, सीता को लंका से लावे । उद्यम हीनके मनके मनोरथ, दिलके बीच रहजावे ॥४॥ पुरुषारथ करके चींटी देखो, वजन खेच ले जावे । पुरुषास्थ करके राजा बादशाह, समर जीत घर
आवे ॥ ५ ॥ परम धरम में पुरुषारथ कर, आवागमन मिटावे । चौथमल कहे गुरु प्रसादे, जाके जग गुण गावे ॥६॥
६३ सत्य की जय. (तर्ज-मैं तो मारवाड़ को वनियो) थेतो सांवा बोलो बोलजी, सगलाने वाला . लागो ॥ टेर ॥ प्रिय अने हितकारी बानी, ज्ञानी सत्य बखानी । सत्य छता अप्रिय कटुक हो वोही असत्य कहानी ॥ १ ॥
झूठा बोल प्रतीत जमावे, कई कुयुक्ति लगावे । सत्य ‘भ.पी निर्भयहो रहवे; सुर जिसका गुण गावे ॥२॥ सत्य खीर प्रिय मिश्री सम है, असत नौन सा खारा । क्रोध लोभ भय हास्य से बोले, कभी न हो निस्तारा ॥ ३ ॥ तोतली जीभ गूंगा मुख रोगा, दुस्वर मूरख जानो। अनादेज वचन इत्यादिक, झूठ तणा फल मानो ॥ ४ ॥ चोखी जीभ सुस्पष्ट भापी, पंडित सुस्वर जीका । निर्दोप
आदेज वचनादिक सब, सत्य तना फल नीका ॥५॥ ऐसी जान असत्य को छोड़ी, बोलो निरवद वाणी । चाथमल कहे गुरु प्रसादे मिले मोक्ष पटरानी ॥ ६ ॥