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जैन मुरोध गुटमा
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२७७ सत्य उपदेश. (त-माड-मीरा थारे काई लागे गोपाल ) : मना तूं भजलेरे भगवान । थाने देवे सद्गुरु नान ॥ टेर। छः खंड केरो साहबोरे, सुन्दर रतन निदान । हुश्रा निवाला कालकारे, चक्रवर्त-सा जान ।। थाने० ॥१॥ रावण भी चल्यो गयो, जो रख तो अभिमान । उसका मारन हार रामचन्द्र, छोड़ गये दश प्राण ॥ थाने० ॥२॥ कहां गये विरूपात जगत में, पाण्डव-से बलवान । हाग दाम ठाम के मालिक, कौरव से सुलतान ।। थाने०॥३॥ काल के पंज पड़ारे, पृथ्वीपतिराजान । जन्मे अजन्मे हो गयरे, कई पामर का प्रमान.॥थ ने० ॥४॥ उतम ना तन पायकर, करले पर धर्म ध्यान । गुरु प्रसाद चौथमल कहे, हो तेरा कल्पान ॥थाने० ॥ ५॥
२७८ क्या करा?
[तर्ज दादरा) . दुनिया के बीच प्रायनें, क्या मला किया। क्या भला कियारे, तने क्या नफा लिया ॥ टेर'। यह मात तात.कुटुम्ब बीच, तूं लुमा रहा। जुल्मों जहर का प्याला तेने हाघों से पिया ॥ दानेयां० ॥ १ ॥ श्रमोस तेरी तकदीर पे, नर भव गमा दिया। इस दुनिया में ऐसा गया,