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________________ पृष्टाक १४७ २१७ २२५ .१४७ .१७६ ३२१ क . .१२२ कुचाल चतुर तज दीजो... .. १२३ केवल तेरे धर्म सहाई . १२४ कैसा आया यह कलियुग १२५ कैसा आया यह काल . १२६ कैसा यह कर्मों का खेल: . . १२७ कैसा बुरा हुक्के का शोक: १२८ कैसी विश्व की रेल बनी.. १२६ कैसे इज्जत रहे तुमारी १३० कैसे बीर कजा के हुकम में. .१३१ कोई नर ऐसा पैदा होय ' १३२ क्या अमोल जिन्दगी का . १३३ क्यों गफलत के बीच में । १३४ क्यों गफलत में रहव दीवाना. .. १३५ क्यों तूं इतना अकड़ के १३६ क्यों तूं भूला झूठा संसारा. १३७ क्यों पाप कमावरे १३ क्यों पाप का भागी बने. १३६ क्यों पानी में मल २ न्हावरे ५४० क्यों प्राणी के प्राण सतावरे १४१ क्यों बुराई पै तेने बान्धी- . १४२ क्यों भूला संसार यार . १४३ क्यों भुल्यो प्रभुको नामा .. १४४ क्यों सोये भर नीन्द में . . , १६६ .२०२ .१८३ २८५ २४६ २४० १८५ २५१ २-३ १५५ गम खाना चीज बड़ी है: १४६ गुणों का धारी ..
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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