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जैन सुबोध गुटका |
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दुशवार है || ४ || होना मुनि है वहतर, पावेगा खास शिव घर | कहे चौथमल भला कर, ऐ हरवार दुशवार
॥ ५ ॥
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२१६ नाटकादर्श.
( तर्ज- तू ही तू ही याद आवेरे दरद में )
मनुष्यों की जिन्दगी नाटक दिखावे । नाटक दिखावे ने ज्ञानी फरमाये || टेर ॥ मुष्टी बांधीने हुश्रोरे नानड़ियो, रमत गमत में यह वय जावे ॥ मनु० ॥ १ ॥ वीसे सुन्दर परगने नारी । चिन्ता रहित भोगों में लोभावे ॥ २ ॥ तीसे खुशी संसार मनावे । प्यारी से पुत्र लेह ने खेलावे ॥ ३ ॥ श्राईरे जिन्दगी वर्ष चालीसे । सत्य बुद्धि कोई सत संग चावे ॥ ४ ॥ भूत भविष्य विचार पचासे । साठे नीचे उत्तर वह आवे ॥ ५ ॥ सत्तर लाठी लांचीरे डोकरिये, अस्सी जितव्य अस रहावे || ६ || नउ में मृत्यु तोर पे सोयो । सौ में राम शरण होई जाये ॥ ७ ॥ खाली हाथ अकेलो प्राणी । दूजी मुसाफिर करण सिधावे ॥ ८ ॥ नाटक किया में प्रभु तुम जोया । दर्जि रीझ या मना करावे ॥ ६ ॥ फकीरसी फेरी देवेरे श्रज्ञानी । बुद्धिमान धर्म लाभ कमावे ॥ १० ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल, श्रागरे से चल जयपुर श्रावे ॥ १९ ॥
२१७ कटुवाक्य परित्याज्य. ( तर्ज- धीरा चालो व्रज का वासी )
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" मत दीजो चतुर नर गाली, पियो समता रत की प्यालीरे || ढेर || थे कटुक वाक्य मत बोलो, क्यों पैर धावो