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जैन सुबोध गुटका ।
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२१४ निन्दा परिणाम. . . . (तर्ज आखिर नार पराई है) जो पर की करे. बुराई है । तो तेरे दोष उस भाई है ॥ टेर ॥ प्रश्न व्याकरण सूत्र मंझार । दूजे सम्बर में अधि. कार। श्रीवीर जिनंद फरमाई है ॥ जो० ॥ १॥ बुद्धिवंत धनवान वो नाहीं । प्रिय धर्मी कुलवान वो नाहीं। वो नहीं दातार युग मांही है ।। २ ॥ शूर वीर रूपचन्त है नाई। नहीं सौभाग्यवन्त गीतार्थी भाई। नहीं बहु. सूत्रों की पढ़ाई है ॥ ३ ॥ तपसी नहीं नहीं परलोक । निश्चय मति है निडर अयोग। नहीं पापी लेत भलाई है ॥ ४ ॥ टेकी धेकी मच्छरी अपकारी । छता गुण वो देत निवारी । या ठाणायंग बतलाई है ॥५॥ एक जमाली नामा साध, वीर प्रभु का करा अपवाद । वो कुल मुखी की पदवी पाई है ॥ ६॥ गुरु प्रसाद चौथमल गाया, सेखे काल पाली में आया, सतत्तर जोड़ बनाई है ॥७॥
२१५ समय की दुर्लभता..
. . (तर्ज-कव्वाली ) ए दिल मौका ऐसा हरबार दुशवार है । नरभव. की कुंज . गली का, मिलना दुशवार है. ॥ टेर ॥ दस्त चश्म तेरेः जर .. जेवर खजाने डेरे ।.. नहीं उस रोज तेरे हैरें, ये हरबार 'दुशवार है ॥.ए. ॥ १ ॥ सदा. न. हुश्न, तेरी मानिंद . दरिया बहता । क्यों गफलतं के बीच रहता, ये हर बार दुशवार है ॥२॥ ये ख्वाब सा जहाँ है, नां किसके साथ रहा है, खाली जलवा दिखा रहा है । ३ ।। जहां में दिल न लगा. तू जुल्मों से वाज आ तू। कुछ भी तो ध्यान ला तू, हर चार :