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सो० ॥ १ ॥ पिता मरता कुटुंब, भाई, सभी मतलब की
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सगाई । लगाता जिग्र तू किस पर, अजल घूमे तेरे शिरपर 11 २ ॥ खलक ये वागसा तू जान, फूल नेकी का ले इन्सान मति जा हाथ खाली कर, लेजा फल फूल तू चहतर ॥ ३ ॥ गफलत की नींद से तू जाग । इन्हीं जुल्मों से दूरा भाग । नशे की चीज जिनाकारी, पाप यह जगत में भारी ॥ ४ ॥ चाहे आराम तू अपना श्री जिनराज को जपना | चौथमल कहे गुरु परसाद, कर जीवों की तू इमदाद || ५ ॥
जैन सुवोध गुटका |
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२१३ सराय की उपमा. ( तर्ज-- एक तौर फेंकता जा )
किस भरोसे रहे दिवाने, यह खल्क जारहा है। रास्ते की भूपही में, तू क्यों लुभा रहा है || ढेर || देखा सुबह सनम को, कूंचे में वन ठन निकले । सुना शाम को सनम का, कोई कफन लारहा है | किस० ॥ १ ॥ सज सज के सेज फूलन की, दूल्हा दुल्हन सोते । दुल्हन श्रावाज देती, उठाती न हिल रहा है ॥ २ ॥ था शहनशाह जबर चह, सरताज या भरत का । अजल ने थाके पकड़ा, अकेला वो जा रहा है ॥ ३ ॥ पोशाकं गुल वदन पे, दरपन में देख सजता । कहता था मुल्क मेरा, जनाजे में जा रहा है ॥ ४ ॥ होना हुशियार जल्दी, मत रहे देखवर तू । कर बंदोवस्त हशर का, चौथमल जिता रहा है ॥ ५ ॥
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