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(३८) जैन सुबोध गुटका । का तो किया है दोष । कुसंगत को लेबो रोक । यह चौथमल जितलाई है ।।६.
२११ पर स्त्री परिणाम
तर्ज--श्राखिर नार पराई है.] ___ यह सतगुरु सीख सुनाई है। खोटी नार पराई है ॥टेर ॥ पंच साक्षी फेरा खाया। उसी प्रीतम से कर कपटायां तो तेरी होने की नाई है ॥ या० ॥१॥ खुदकी नार करें पस्संग । सुनतें वचन बदल दे रंग । ऐसे ही जिसे व्याही है ।। २ ।। झूठा भक्ष पवित्र नहीं खावे । या कुत्ता या कौवा चावे । ऐसी गैर लुगाई है ॥ ३ ॥ अन्य पुरुषसे नैन मिलावे । वात अन्य मन में पर चावे । कहूं चरित्र कहां ताई है ।। ४ ।। देखो भर्तृहरी भूपाल । जान पिंगला बद चाल । तुरत गया छिटकाई है ।। ५ ।। कीचक ने निज प्राण गमाया । पद्मनाभ ने क्या फल पाया । रावण ने लंक गमाई है ॥ ६॥ सतत्तर साल मंगमर मझार । सोजतिय दरवाज बाहर । चौथमल आगाई है ॥ ७ ॥
२१२ सुसंयोग,
(तर्ज-रेखता]. " ' सोच दिलंमें जरा गाफिल, वखत तुझको मिला.का: मिल । वनाले काम वो तेरा, हो जावे बहिश्त में डेरा ।।