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________________ जैन सुवोध गुटका। (४७) 'मोक्ष वरेगा, बदी चौरासी जेल में । चौथमल हित शिक्षा दीनी, इन्दौर अलीजा शहरमें ॥४॥ . ६६ गुरु शिक्षा चेतन को. (तर्ज-मांड) चेतन अब चतो अवसर पाय, थाने सद्गुरुजी समझाय ॥ टेर ॥ काल अनंतो भव मांही फिरतो, पायो नर अवतार | तारन तरन सद्गुरु मिल्यारे, हृदय ज्ञान विचार । चे०॥१॥ तन धन यौवन जान अथिर तू, बीजूको चमकार । पलटत वार न लागे निशीभर, सुपना सो संसार ॥ २ ॥ जो नर ढोल्ये पोढ़तारे, फूलन सेज बिछाय । बत्तीस विध नाटक को देखतारे, ते पण गया विरलाय ॥३॥ टेड़ी पगड़ी बांधतारे, चावता नागर पान । लाखों फौजां लारे रहती, कहां गया सुलतान ॥ ४॥ अवतो चेतो चतुर सुजान मत जगमें ललचाय । चौथमल कहे लावो लीजे । प्रभु से ध्यान लगाय ॥ ५॥ ७० जैसे कर्म वैसे फल. (तर्ज-ठुमरी) कर्मन की गति ज्ञाता सुनावे । जैसा करे वैसा फल पावः॥ टेर ॥ दोनों भाई राम और लक्षमण । देखोजी बनवास रहावे ॥ कर्म०॥१॥ हरिश्चन्द्र राजा तारादे रानी ताके पासे नीर भरावे ॥२॥ सीता सती चन्द्रसी निरमल कलंक उतारने धीज करावे ॥ ३ ॥ क्रोड विलाप कियां
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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