________________
जैन सुबोध गुटका ।
( २६१ )
|| टेर || अरिहंत सिद्ध सूत्र सिद्धान्त को, गुणवंत गुरु चौथा जान । स्थावर बहु सूत्री तपसी तथा करे स्तुति हित श्रान ॥ १ ॥ वार वार उपयोग देतो ज्ञान में, शुद्ध समति लेवे पाल | विनय करे जो गुरु देव को, आवश्यक करे दोई काल ||२|| व्रत पचखाण पाले निर्मला, परमाद टाली ध्यावे शुभ ध्यान । तपस्या जो करे बारे प्रकारनी, देवे भय सुपातर दान || ३ || व्यावच करे गुण कुल संघ की, सर्व जीवां ने सुख उपजाय । अपूत्रे ज्ञान नित पढ़तो थको, सूत्र की भक्ति करे चित्त लाय ॥ ४ ॥ जिन मारग ने खूब दिपावतो, बांधे तीर्थकर जीव गोत, चारों ही संघ में होय शिरोमणि, तीनों ही लोक में करे उद्योत ॥ ५ ॥ सम्मत उन्नीले चौरासी साल में, नाथद्वारे से खे काल | गुरु प्रसादे चौथमल कहे, लागो है नवो यो साल ॥
६ ॥
३६१ सदुपदेश.
. (तर्ज--- मारो मन सुधर्म सेवा में )
आठों पहर धंधा में फैलियो, विषय भोग को होकर रसियो । लाग रयो तूं बढ़पन में, घणो मजो प्रभु स्मरण में || टेर ॥ १ ॥ न्हाय धोय पौशाक सजावे, इतर लगा बाग़ा में जावे | देखे मुख तूं दर्पण में, घणो मजो प्रभु. स्मरण में ॥ २ ॥ ल खों रुपे का माल कमाया, दया